Thursday 12 March 2015

हाइकु


1
वीर हँसते
जिन्दगी ज्यूँ छेड़ती
भीरु रो लेते ।

2
वसंत शोर
रवि-स्वर्णाभा-होड़
पीले गुच्छों से।

3
असार स्वप्न
भस्म हुई उम्मीदें 
धुँआ जिन्दगी ।

4
दुःख व हंसी
जिंदगी की सौगातें
रूप सिक्के के ।

5
पद के मद
आंगन में दीवारें
घर कलह।

6
घर कलह
बरसे रिश्तों पर 
बेमौसम सा।

7
अँक हो तंग 
मिटे जलन जंग
स्नेह बौछारें ।

8
मेघों की टोली
लाये रंगीन डोली
महके बौर 

=

नेति नेति —अन्त नहीं है, अन्त नहीं है!

नेति नेति {न इति न इति} एक संस्कृत वाक्य है जिसका अर्थ है 'यह नहीं, यह नहीं' या 'यही नहीं, वही नहीं' या 'अन्त नहीं है, अ...