Monday 28 January 2013

रच शौर्य गाथा ना गा चाँचरी( वह गाना जो वसंत में गाया जाता है )


आज लगता है , काश मुझे भी होती , एक धी .....
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आ जा ,सुन ल जा बात खरी-खरी(स्पष्ट)
ना बताइब ,ना समझाइब बारी-बारी(बार-बार)
बहुत चला चु क ल जा जुबान के आरी(लकड़ी काटने वाला)
अब आ गइल बा ओकर पारी
अपने पे आगइल त पड़ी भारी
शर्मों - हया से संकुचल नारी
पा जाये मान - सम्मान त हो जाए वारीफेरी(निछावर)
ना समझ ओकरा क अबला-बेचारी
संगी संयमित ना रहे त मार पिला-पिला वारि(पानी)
ना बुझ बेटी के  नाजुक गिरी(किसी बीज के अन्दर का गुदा)
उ लाँघ चूकल बड़हन(ऐवरेस्ट) गिरि(पहाड़)
कोई छूये ना , ओकर आँचल के किनारी
ना त भोंक दी , तोरा छाती पे कटारी
हो चुकल अरिघ्न(शत्रु का नाश करने वाली) ना बना व जा अरि
ना बन के अब रह सके दुधारी
ओकरा पास बा कलम-बेलन दुधारी
रच शौर्य गाथा ना गा चाँचरी( वह गाना जो वसंत में गाया जाता है )
बहुत बन के रह चु क ल गठरी-कुररी(मादा-टिटहरी)
मेहनत के रंग दिखला बन चातुरी(चतुराई,धूर्तता)




Tuesday 22 January 2013

सफ़र , एक आजाद बच्ची की , कैद से स्वच्छंद जिंदगी


एक छोटी सी बच्ची , देर रात तक अपने ताऊ ,बड़े चाचा ,छोटे चाचा ,फूफा ,पापा के (काम से बाहर गए के) लौटने का इन्तजार करती .... जब सब घर आते और उस बच्ची को जगा देखते , तो , सबके चेहरे से थकान जैसे मिट सी जाती और उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती .... जब वे सब खाना खाने बैठते तो वो बच्ची दौड़-दौड़ कर सबकी थाली-पानी लगाती .. रोटियाँ पहुँचाती ....
संयुक्त परिवार था .... लेकिन सबकी पत्नियाँ (ताई , बड़ी चाची , छोटी चाची और बुआ) गाँव में रहतीं और शहर में उस बच्ची की माँ और सबके साथ , सबके मिला कर 22 बच्चे .... यानि बड़े-छोटे सबको जोड़ कर 28 व्यक्ति का परिवार .... सुबह से शाम तक चहल-पहल रौनक लगा रहता .... संयुक्त परिवार था तो कुछ खट-पट होती होगी .... लेकिन उस बच्ची को सभी बहुत प्यार करते .... सबकी वो दुलारी थी .... केवल उसका जन्मदिन बहुत धूम-धाम से मनता .... खाने-पीने ,पहनने-ओढ़ने में कोई रोक-टोक उसे नहीं मिला ....
आजाद पक्षी की तरह चहकती वो बड़ी हुई और उसकी शादी एकल परिवार में हुई .... जहाँ पर्दा भी था ...... उसे घर से बाहर के चौखट तक जाने की इजाजत नहीं थी .... उसके बोलने - हंसने पर ,खाने-पहनने पर रोज टीका - टिपण्णी होती .... एक दिन वो अपने सोने के कमरे में बैठी थी ,गर्मी का दिन था तो कमरे की खिड़की खुली रखी , बाहर सड़क से उसके ससुर जी को वो पलंग पर बैठी नज़र आई तो वे घर में आये और खिड़की के पर्दे में जगह-जगह काँटी ठोक दिए ताकि फिर बाहर से कोई उनकी बहु को देख ना सके ....
एक दिन घर में उसके अलावे केवल एक छोटा नौकर था ,घर के बाकी सदस्य कहीं घुमने गए थे ...... उसे बाहर से किसी औरत की आवाज सुनाई दी ,और नौकर बाहर से ही आता दिखा , तो वो नौकर से पुछी :- बाहर कौन है .... नौकर बोला :- आपकी माँ ......
वो बाहर झांक कर देखी तो फटेहाल में एक भिखमंगी खड़ी दिखाई दी .... नौकर की बात सुनने पर उसे बहुत गुस्सा आया ,लेकिन वो नौकर को डांट नहीं सकती थी .... सास के घर आने पर ,उनसे वो इस उम्मीद में बात की कि शायद वे डांटें ..... लेकिन सब हंस कर रह गए ... उसे बहुत बुरा लगा ...... वो नौकर से बात करना छोड़ दी और काम लेना भी ..... लेकिन ये बात घर में किसी को पसंद नहीं आया ........ एक दिन उसके पापा को बुलवा कर ,पापा के साथ उसकी की भी बहुत बेइज्जत की गई और घर से निकल जाने का आदेश मिला ....... परन्तु ,उसके पापा ,उसके सास-ससुर से हाँथ जोड़ ,पैर पकड़ कर माफ़ी मांग लिए और बात को संभाल लेने की सीख बेटी को दे कर चले गए ....
अब उसकी सास को हथियार मिल गया ,कोई छोटी-बड़ी बात होती ,किसी तरह की कोई घटना होती , उसके बाप-भाई को बुलवा लेती और दिल खोल कर बेइज्जत करती और उसका मनोबल तोड़ने का  पूरा कोशिश करती .... वो चाह कर भी किसी बात , कोई अन्याय का विरोध नहीं करती ... उसे अपने मैके के लोगों पर  गुस्सा आता , कि वे उसकी सास के बुलाने पर आ क्यूँ जाते हैं , उन्हें मना भी करती , तब भी वे आ जाते ,शायद उन्हें डर हो , कि वे नहीं जायेगें तो उनकी बेटी को वापस पहुँचा दे .... ब्याहता बेटी को कौन अपने घर में बोझ बना कर रखना चाहेगा ...... आसान था आकर माफी मांगना और बेटी को नरक में जलने के लिए छोड़ना .... ये सिलसिला या यूँ कहें ,ये नाटक हर महीने चला शादी से 6छ्ह साल तक ....
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रिश्ता बनाने वाले , ये तूने सबको क्या दिया
एक ओर  कुआँ , दूजी ओर खाई खोद दिया
एक  श्रवण को अंधा , कान से कच्चा बना दिया
माता कहती दिन को रात , तो रात कह दिया
माता , सूरज को कहती चाँद , तो चाँद कह दिया
श्रवण की हुई नहीं थी शादी , क्या तूने उसे बता दिया 
श्रवण जब मारा गया , तब उसके माँ-बाप ने श्राप दिया  
खुद माँ-बाप की जिन्दगी कैसे कटी नहीं सुना दिया
खुद माँ-बाप जी लिया , बहू की जिन्दगी नर्क बना दिया !!
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फिर वो जिद पर अड़ कर पति के पास नौकरी पर आ गई ....
नौकरी पर पति के मर्जी के खिलाफ रह रही थी तो मार खाना भी शामिल हो गया .... हालात कैसे भी रहे ,लेकिन वो कभी यह नहीं सोची कि वो तलाक ले ले और अपनी जिंदगी अकेले जिए .... समाज और समाज के नियम-कानून , पति की छोड़ी औरत का क्या हाल होता है , उससे वो अनजान नहीं थी ....  और तलाक़ के बाद उसकी जिंदगी और मुश्किलों से घिर जाती .... ऐसी बात भी नहीं थी कि उसमें अकेले जीने की हिम्मत और काबिलियत की कोई कमी थी .... लेकिन वो हारने वालों में से नहीं थी ..... लड़ कर जितने वालों में से थी ....
जब वो एक परिवार से लड़ कर अपनी गरिमा की रक्षा नहीं कर पाती तो दहलीज़ लांघने के बाद हज़ारों नर-भक्षियों से अपनी अस्मिता की रक्षा करनी पड़ती तो वो कैसे करेगी .... रोज मरमर कर जीने की हिम्मत वो कहाँ से लाती और वो अपने पति को छुटकारा दे , उनकी जिंदगी आसान नहीं बनाना चाहती थी .... मर्दों का क्या , तलाक हुआ और उनकी दूसरी शादी हुई और एक लड़की बली-बेदी पर चढ़ी .... समाज तो पति से अलग हुई मादा को न जीने देती है और ना मरने .... उसे बस इन्तजार रहा अपने बेटे के बड़े होने का ....
बेटे के बड़े होते ही , वो सब ठीक करती चली गई .... पहले विरोध की अपने भाई-बाप के बुलाने का , फिर ,अपने ऊपर उठने वाले हांथो का .... एक दिन में नहीं हुआ , उसमें वर्षो लगे .... लेकिन हिम्मत रखी और आवाज़ उठाती रही .... आज अपने पति के साथ रहते हुये भी , वो स्वच्छंद जिंदगी जी रही है .......... !!
इन बातों को बताने का मक़सद यही है कि अपने हालातों को बदलने का जज्बा हर इंसानों में होनी चाहिए ...... जब एक परिवार की स्थति में बदलाव ला सकेंगे , तभी तो समाज बदलेगा और जब समाज बदलेगा तो देश की स्थिति तब तो सुधरेगी ...........

Sunday 20 January 2013

समझा - बुझा - साँझा - माँझा करो



युवराज के ताजपोशी की
तैयारी शुरू होने पर है
होशियार में से
हो भी निकला हुआ है
ना पत्नी है ना बेटी ,
दर्द वो क्या जानेगा :(
मुन्ना को मिला झुनझुना समझा करो ...........


जब लगने लगा ,
इंतजार खत्म होने पर है
बेटी की मौत - शहीद की
कुर्बानी रंग लाने पर है
दिग्गजों में उठा-पटक
क्या गुल खिलाने पर है
अब तक जो होता आया है
वही होता रहेगा बुझा करो ..........

सबकी निगाह
फास्ट ट्रैक कोर्ट पर है
कुछ नहीं सोच-समझ में ,
कठोर कानून कब बनेगा 
क्या होगा शहीदों के
मान-सम्मान का , आतंकित है मन 
कब कब कब ,कितना ,
कौन जानता है ,साँझा करो ................

खुदा की लाठी बे-भाव पड़ेगी ,
 दम निकाल के छोड़ेगी ,
हम ये क्यूँ इंतज़ार करें ,
छोड़ो खुद की बातें ,
बातें प्यार की ,
जुटाओ हिम्मत ,
करो इन्कलाब की बातें ,
एक जलियावाला बाग
तब बना था ,एक हम बना दें ,
उनकी आत्मा को झंझकोर कर ,
अपनी-अपनी कर-कलम पर माँझा करो ......

Thursday 17 January 2013

हौसला कैसे बढ़ाऊँ


साफ दर्पण में शक्ल देखने का हौसला नहीं बचा
दिखता है अपनी बेबसी ,व्यथित इंसानों की लाचारगी
खुद को तसल्ली दे भी लूँ ,क्या कह कर उन्हें तसल्ली दूँ
शेर का खाल पहन भी लूँ , खुश हो भी लूँ
दहाड़ने का मौसम भी है ,मौका-ये-दस्तुर भी
पूंछ हिलाने से फुरसत कैसे पा लूँ 
मसाल को मंजिल पर पहुँचाना तो है 
मार दिए जाने का ना तो डर  ,ना शर्मिंदगी है  
लेकिन ,रास्ते ना-वाकिफ हैं ,
लड़ाई के तरीके भूल जाना ,कैसे माफ़ करूँ
जिन्हें कोसते-कोसते सुबह-शाम करूँ
सब तकलीफों का जिम्मेदार मानूँ
जब वे भिक्षाटन में निकले तो मुग्ध हो ,
भिक्षा देने का गर्व क्यूँ महसूस करूँ

न्याय दिलाने के लिए ,कौन सा दरवाज़ा खटखटाऊँ
नर-भक्षियों का सामना कर ,सज़ा तक कैसे पहुँचाऊँ
छुटता जा रहा आस , नील का रंग कैसे उतारूँ

आत्मविश्वास के कमान पर स्वाभिमान का तीर कैसे चढ़ाऊँ
साफ दर्पण में शक्ल देखने का हौसला कैसे बढ़ाऊँ ............





Sunday 13 January 2013

शाबाश प्रजातंत्र

(1)
नेता दुर्वृत्त
शोहदें होशियार
शहीद ना हों
आम इंसान ,क्या हो ?
शाबाश प्रजातंत्र :((


(2)
जनता द्वारा
जनता का , के लिए
चुन लिए , तो
राजा मैं , गुलाम तू
क्यू लगा , दर्शन हो :((


(3)
भ्रम टूटा है
कुछ नहीं बदला
रिश्ते रिसते
अक्ष-कोर भीगाया 
दगाबाज़ शासक :((


(4)
बहरी सत्ता
कालातीत कहानी
आखेट सजा
माँ मरी गद्दी मिली
पत्नी थामी कमान


(5)
चाल चली है
बेटे को देनी डोर
बनाया मौन
कहता ,सब ठीक
डमी(dummy)  मौन नेतृत्व
 


(6)
ढोंगी नायक
मृत सा अहसास
खाली मुट्ठी दी
कोई बताओ क्या हो ?
क्या करूँ आवाज़ों का ?


(7)
अंतर्लापिका 
जैसी स्तिथि है आज
ना धैर्य खोयें
ना युद्ध बंद करें
अंधापन दूर हो
                      अंतर्लापिका (वह पहेली जिसका उतर उसी में वर्तमान हो)

(8)
एक सन्यासी
मानता रहा स्त्री का
 एक ही रूप
माँ का ईश्वर जैसा
क्रन्तिकारी –न्यासी

(9)
हिम्मत करो
बनों उस के जैसा
सुधरों ख़ुद
बदलों जग ,देश
ऋणमुक्त हो जाओ




Thursday 10 January 2013

नेताओं की चाल ....

http://bulletinofblog.blogspot.in/2013/01/blog-post_10.html

http://www.parikalpnaa.com/

http://nayi-purani-halchal.blogspot.in/2013/01/blog-post_12.html  


 नेताओं की चाल .........
सोचो-देखो ,समझो-परखो
ये है राजनीती का खेल .....
दामनी के आगे हो गई रेल ....
इन नेताओं का चाल .....
गैस को बना लिया ढाल ....
जिसे हमने निर्भया, दामिनी , अमानत ,
ज्योति जैसे नामों से पुकारा ....
उसके जीने का संकल्प ,
सुस्त पड़ी , तरुनाई को अन्दर तक झकझोरा ....
निश्चित था ,अभी ये परखा जाना ....
निश्चित था ,अभी ये परखा जाना ....
जनाक्रोश के दबाब में ,सरकार के वादे का पूरा होना ....
सरकारी लापरवाही और
गैर-जिम्मेदारी का अहसास करना ....
त्वरित करवाई के लिए बाध्य किया जाना ....
लेकिन अभी बजट-सत्र के पहले ,
सभी चीजों का दाम बढ़ाना ....
मकसद है सब का ध्यान मुख्य मुद्दे से हटाना ....
मुश्किल नहीं इसका अंदाज लगाना ....

बेटे हो शहीद अपुन का क्या ....
हम बने रहेगें मुरीद,पाक का , क्या ....
सब कह रहे हैं , उन सपूतों ने शहादत दी है ....

लेकिन मैं कह रही हूँ ,
उनकी हत्या इस देश के नेता और
उन्हें समर्थन देने वालों (मेरा समर्थन नहीं है ,
क्यों कि मैं कभी vote नहीं दी ,
क्यों कि , नगरवधू सरीखे नेता
मुझे कभी भाये नहीं) ने की है ....
गलत नीति का नतीजा भी गलत ही होता है ....

दूध मागोगे खीर दूँगा ,
देश मागोगे चीर दूँगा ,
कहने वाले सपूत ,
कहीं इन नेता को ही चीर दें ....
नेताओं ने कल देश बाँटा ,
आज वे ढाका बाँटने वाले सपूत ,
लाहौर बाँटने की कुव्वत रखते हैं ....

जग जाओ नेताओं , हो जाओ शर्मसार ....
नहीं तो बच्चे जग गए ,तो हो जाओगे संगसार ....

व्याकुल हो बिसरा दें ,बेटी की आहुति ....
विरोध ना हो स्त्रिद्रोही तन्त्र का ??
प्रजातंत्र की रणनीति दे रही चुनौती ....
जो जनता अड़ी रही ,सीना ताने ,सामने ,पानी-बौछार ,
अश्रु-गैस और बन्दुक-गोली के ....
वो क्या अडिग नहीं रहेगी ,डर जायेगी ??,
महंगी हुई समान के बढ़ती दामों के बोली से ....
बना लो ,लगा लो अंधा कानून ,
जितना भी हो जोर-जबरदस्ती ....
हमने अंग्रेजो को उखाड़ फेकातेरी क्या है हस्ती ....

??????????????????????????????????


Monday 7 January 2013

पीड़ा की मिट्टी





पिता - पति - पुत्र से
स्त्री के तीन आयाम .........
और
एक स्त्री ख़ुद से
पाती दर्जा दोयम ..........


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आग्रही अज्ञ ??
आशुतोष -आसीस
आकंठ डूबी
आकुला - बिलबिलाई
 अंतक लाई
अंदोर अंधड़ सा
स्त्री की अस्मिता
चादर मैली ही हो
ना है बर्दाश्त
दिवालियेपन सा
बदसूरत
लिजलिजा - घिनौना
अँधेरी रात
मौज़ूद थी उदासी
बहला दिल 
उपजाई अनल्प
पीड़ा की मिट्टी
आक्रोश ,ले आया है
गुलाबी क्रांति
स्त्रीवादी आन्दोलन
ज्वाला भड़की
चिंगारी से चिंगारी
    ज्वालामुखी है
अनवच्छिन्न नारी
आत्मसाक्षात्कार से

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Tuesday 1 January 2013

हम ना भूलें = * हाइकु *





आप सब का नया साल सुख और शांति के साथ बीते .
आप और आपके परिजन इस साल सुरक्षित रहें ............ !!


http://hindihaiga.blogspot.in/2013/01/blog-post.html  

रचनाएँ hindihaiga@gmail.com पर भेजें - ऋता शेखर मधु
* हाइकु *  *हाइगा*



उम्मीद थामे
एक छोर फिसला
दोषी क्या भाग्य ? 

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हम ना भूलें
नैन इंतजार में
वादा किया है
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रौशनी करो
नहीं हक़ ख़ुशी का
ना फैला सको
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पलते रहे
नयनों के सपने
अभावों में जो
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हैं चटकते
फलने से पहले
झुलस जाते
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ख्याल कर लें
खुशियों से भर दें
हर्षित करें !!


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उम्मीद थामे
एक छोर फिसला
दोषी क्या भाग्य  ?
कहने वाले कहें
हम ना भूलें
नैन इंतजार में
वादा किया है
रौशनी फैलाने का
ना फैला सको
नहीं हक़ ख़ुशी का
पलते रहे
नयनों के सपने
अभावों में जो
जीवन मोड़ पर

हैं चटकते
फलने से पहले
 झुलस जाते
आओ ख्याल कर लें
खुशियों से भर दें !!


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अनुभव के क्षण : हाइकु —

मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच {म ग स म -गैर सरकारी संगठन /अन्तरराष्ट्रीय संस्था के} द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव (५ मार्च स...